तलाश है एक अदद एंग्री यंगमैन की…

अमिताभ बच्चन को बिग बॉस के रूप में देखना बड़ा दयनीय है…क्या बिग बॉस सत्तर के दशक का वही एंग्री यंगमैन विजय है जिसने पूरे देश को अपना मुरीद बना लिया था…ठीक है उम्र असर दिखाने लगी है…लेकिन उम्र के इस पड़ाव में क्या पैसे के लिए हर ऑफर स्वीकार कर ली जाए…सिस्टम से लड़ने वाला विजय सीनियर सिटीजन बनने के बाद सिस्टम से समझौते क्यों करने लगा…क्यों आज हमारा एंग्री यंगमैन कहीं खो गया लगता है…वो एंग्री यंगमैन जिसे परदे पर राजेश खन्ना, विनोद खन्ना, धर्मेंद्र, शशि कपूर, शत्रुघ्न सिन्हा, संजीव कुमार जैसे दिग्गजों का साथ मिलता था तो उसका हुनर और निखर कर सामने आता था…आज वही हमारा विजय चॉकलेट, च्वयनप्राश, पेन, सीमेंट, सूटिंग्स और न जाने क्या-क्या विज्ञापनों में बेचते-बेचते हर कदम पर समझौते करता नज़र आता है…

ऐसे में हमे एक नए विजय की तलाश है…नए एंग्री यंगमैन की…क्यों है तलाश…क्योंकि देश भले ही 62 साल पहले आज़ाद हो चुका है, लेकिन गुलामी के जीन्स हमें विरासत में मिले हैं…ये हममें इतने रचे-बसे हैं कि चाह कर भी उनसे हम अलग नहीं हो सकते…हम दमनकारी व्यवस्था का खुद विरोध नहीं कर सकते…लेकिन चाहते हैं कि कोई राबिनहुड आए और हमारी लड़ाई लड़े…अब बेशक उसका व्यवस्था से लड़ने का तरीका हीरो सरीखा न होकर एंटी हीरो सरीखा हो…अब ये एंटी हीरो पर्दे पर सिस्टम से लड़े या असल जिंदगी में हम उसके लिए तालियां पीटते हैं…

1973 में ज़ंजीर से अमिताभ के एंग्री यंगमैन का उदय 1975 में दीवार तक आते आते चरम पर पहुंच गया…ये ठीक वही दौर था जब लोकनायक जेपी इंदिरा-संजय के निरंकुश सिस्टम के खिलाफ अलख जगा रहे थे…लोगों को असल जिंदगी में जेपी और पर्दे पर अमिताभ के विजय में ही सारी उम्मीदें नज़र आईं…लेकिन आज 35 साल बाद लोगों को 68 साल के अमिताभ में विजय नहीं अशक्त बिग बॉस ही नज़र आता है…जो व्यवस्था से लड़ नहीं सकता बल्कि व्यवस्था का खुद हिस्सा ही बना नज़र आता है…

ऐसे में अगर कोई एंग्री यंगमैन की तलाश में निकलता है तो उसे राज ठाकरे ही सबसे मुफीद लगता है…वो राज ठाकरे जो सिस्टम से लड़ता नहीं बल्कि खुद ही सिस्टम बनाता है…करन जौहर को एक धमकी मिलती है तो पुलिस के पास नहीं राज ठाकरे की चौखट पर नाक रगड़ने पहुंच जाते हैं…शायद इसीलिए कहा जाता है कि खुद “गब्बर” से भी बड़ा होता है “गब्बर” का खौफ़…और आज लोगों की मजबूरी है कि उन्हें राज ठाकरे के “गब्बर” में ही अपना खोया विजय नज़र आ रहा है…

स्लॉग ओवर
कर्मचारी फुटबॉल की बात करते हैं…
मैनेजर्स क्रिकेट की बात करते हैं…
बॉस टेनिस की बात करते हैं…
सीईओ गोल्फ की बात करते हैं…
(ये पोस्ट बढ़ने के साथ गेम की बॉल छोटी क्यों होती जाती है…)

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