आओ, आपको जंगलमहल ले चलूं…खुशदीप

कल आप से वादा किया था आज आपको जंगलमहल का सच बताऊंगा…जंगलमहल नाम सुनकर ऐसी कोई तस्वीर ज़ेहन में मत बनाइए कि मैं आपको जंगल में स्थित किसी महल की सैर कराने ले जा रहा हूं…जंगलमहल का मतलब है पश्चिम बंगाल के पुरुलिया, बांकुरा और पश्चिमी मिदनापुर ज़िले…

सबसे नीचे के बायीं ओर के तीन ज़िले-पुरुलिया, बांकुरा, मिदनापुर

इसी जंगलमहल में झारग्राम का इलाका भी आता है जहां पिछले शनिवार हावड़ा से मुंबई जा रही ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस त्रासदी में 158 लोगों की मौत हो गई…सैकड़ों घायल हो गए…परिवार के परिवार तबाह हो गए लेकिन राजनीति अपना नंगा नाच कर रही है…

आज इस पोस्ट में मैं सिर्फ जंगलमहल की ही बात करूंगा…नक्शे पर जंगलमहल को देखने से किसी को ये नहीं पता चलेगा कि ये देश के सबसे पिछड़े इलाकों में से एक है…चंद लोगों को छोड़ दिया जाए तो यहां की सारी आबादी ही बीपीएल यानि गरीबी रेखा से नीचे है…आदिवासी बहुल इस इलाके में जंगल ही जीने का साधन रहा है..लेकिन इस जंगल की संपदा को भी टिंबर माफिया ने प्रशासन की साठगांठ से लूटना शुरू किया तो आदिवासियों को जीने का ही संकट हो गया…विकास किस चिड़िया का नाम होता है, यहां के किसी बाशिंदे को नहीं पता…पीने का साफ़ पानी, स्वास्थ्य सुविधाएं, तालीम, बिजली, सड़क तो बहुत दूर की कौड़ी है, यहां लोगों को दो वक्त की रूखी-सूखी रोटी और तन ढकने को लंगोटी ही मिल जाए तो ये अपने को राजा से कम नहीं समझते…

जंगलमहल के आदिवासियों में से शायद ही कुछ खुशकिस्मत होंगे, जिनके पास राशनकार्ड होंगे…इनके लिए राशनकार्ड की वही अहमियत होती है जैसे अमेरिका में बसने की चाहत रखने वालों के लिए ग्रीन कार्ड की..आदिवासी, दलितों के राशनकार्ड बने भी हैं तो उन्हें राशनकार्ड डीलर्स ने ज़बरन अपने कब्जे में कर रखा है…बताता चलूं कि राशनकार्ड डीलर सत्ताधारी दल के अनुकंपा प्राप्त कार्यकर्ता ही बनते हैं…राशन डीलर्स इन राशन कार्ड के दम पर सरकार से पूरा सस्ता गल्ला उठाते हैं और खुले बाज़ार में उसे बेचकर चांदी कूटते हैं…जिस पेट को सबसे ज़्यादा अन्न की ज़रूरत होती है, उसे भूखे पेट ही सोने को मजबूर होना पड़ता है…

जो आदिवासी कभी जंगलमहल में ज़मीन के मालिक हुआ करते थे, वो अब खेतों में मज़दूरी के मोहताज हैं…दिन भर बदन तोड़ने के बाद भी सिर्फ नाम का ही इन्हें मेहनताना मिलता है.. सरकारी कागज़ों में जंगलमहल के तीन ज़िलों- पुरूलिया, बांकुरा और पश्चिमी मिदनापुर- के लिए विकास और कल्याण योजनाओं की भरमार है, लेकिन इनका रत्ती भर भी लाभ लोगों तक नहीं पहुंच रहा…मसलन…

बीपीएल के लिए बुज़ुर्ग पेंशन स्कीम के मामले में पश्चिमी मिदनापुर बंगाल के 19 ज़िलों में सबसे पिछड़ा है…

राष्ट्रीय फैमिली बेनिफिट स्कीम में घर के मुखिया की मौत पर सरकार की ओर से दस हज़ार रुपए की मदद एकमुश्त दी जाती है…आलम ये है कि पुरुलिया की दो ग्राम पंचायतों में एक भी परिवार को ये लाभ कभी नहीं मिला…


स्वर्णजंयती ग्राम स्वरोज़गार योजना में बीपीएल परिवारों को सरकारी अनुदान के साथ छोटे कर्ज़ दिेए जाते हैं…लेकिन यहां इस योजना में कोई रजिस्टर्ड ही नहीं है…इसलिए बैंक किसी को भी ये कर्ज देने की ज़ेहमत नहीं उठाते…

इंदिरा आवास योजना के लिए बांकुरा में जितना सरकारी फंड आया, उसमें से दो तिहाई बिना इस्तेमाल हुए ही सरकार को वापस चला गया…

जंगलमहल में विकास से ज़्यादा ज़िंदा रहने का महत्व है…उन्हें सुख-सुविधाएं नहीं बस रोटी चाहिए…और ये रोटी उन्हें कितनी मिलती है, इसका अंदाज़ इसी से लगाया जा सकता है कि जंगलमहल की 85 फीसदी महिलाएं कुपोषण की शिकार हैं…


अब आप बताएं, देखना चाहेंगे जंगलमहल…सरकार तो सब कुछ देखकर भी आंखें मूदे हुए है…सोए को तो आप उठा सकते हो लेकिन जो जानबूझकर सोने का नाटक करे, उसे कौन उठा सकता है…

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