हम हिंदुस्तानी आतंकवादी क्यों नहीं बन सकते…खुशदीप

कल आतंक पर व्यंग्य पोस्ट किया था…लेकिन फिर एक सवाल भी जेहन में आया कि हिंदुस्तानी आला दर्ज़े के आतंकवादी क्यों नहीं बन सकते...ठीक वैसे ही जैसे अमेरिका आजकल अफगानिस्तान में बैड तालिबान और गुड तालिबान का फर्क दुनिया को बता रहा है…तो मैं कह रहा था कि हम हिंदुस्तानियों में ऐसी कौन सी जन्मजात कमियां या खूबियां हैं जिनके चलते हम कभी आतंकवादी बन ही नहीं सकते…इस पर अंग्रेज़ी में एक लेख हाथ लग गया…उसी का अनुवाद कर पोस्ट कर रहा हूं…

मान लीजिए आतंकवादियों के संगठन में भर्ती के लिए एक विमान हाईजैक करने का मिशन हमें सौंपा जाता है…वो मिशन क्यों फेल हो जाएगा, इसके भी दस बहाने (सॉरी वजह) हैं…

1. हिंदुस्तानी हमेशा लेट पहुंचते हैं…कम से कम चार फ्लाईट मिस करते और डेडलाइन निकल जाती…

2. हम धीरे बात कर ही नहीं सकते, इसलिए दूसरों का ध्यान हम पर रहना लाज़मी है…

3. फ्लाईट पर मुफ्त खाना और ड्रिंक्स ज़्यादा से ज़्यादा झटकने के चक्कर में यही भूल जाते कि हम किस मिशन के लिए विमान पर चढ़े हैं…


4. हमें हाथ नचा-नचा कर बात करने की आदत है, इसलिए हथियार नीचे रखने पड़ते…


5. हम कोई बात पेट में पचा नहीं सकते, इसलिए एक हफ्ता पहले ही मिशन के बारे में हर किसी को बता देते, इस हिदायत के साथ कि किसी को कानों-कान इसका पता नहीं चलना चाहिए…

6. मिशन को हम एक दिन के लिए टाल देंगे क्योंकि उस दिन क्रिकेट मैच होने वाला है…


7. विमान पर बंधकों के साथ फोटो खिंचवाने के चक्कर में हम एक-दूसरे पर गिरते पड़ते दिखेंगे…


8. हमारे बीच तर्क शुरू होगा और विमान के बीच में ही लड़ाई करना शुरू कर देंगे…

9. हम में से हर एक की ख्वाहिश विमान को खुद चलाने की होगी…

10. हम विमान के विंड-स्क्रीन पर देश का झंडा लगा देंगे…


इसलिए भाइयों, और कुछ भी करना आतंकवाद को करियर बनाने की कभी मत सोचना…

स्लॉग ओवर…

मक्खन की तमन्ना… जब वो मरे तो बिल्कुल अपने दादाजी की तरह..

मक्खन के दादा शांति के साथ सोते हुए इस दुनिया को अलविदा कह गए थे…

वो उस कार के यात्रियों की तरह चीख-चिल्ला नहीं रहे थे…

जिस कार को मरते वक्त मक्खन के दादा ड्राइव कर रहे थे…

(डिस्क्लेमर…इस पोस्ट को विशुद्ध हास्य की तरह लीजिए…कृपया इसके कोई गंभीर अर्थ मत ढूंढिएगा…)

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