परंपरा के नाम पर अमृतसर जैसे हादसों को न्योता कब तक…खुशदीप

अमृतसर दशहरा हादसे
में जिन्होंने अपनों को खोया, वो भरपाई किसी जांच, किसी मुआवजे से पूरी नहीं होगी.
लेकिन अपने अंदर झांक कर हम ये तो सोच ही सकते हैं कि परंपराओं के नाम पर ऐसे खतरे
हम कब तक मोल लेते रहेंगे
?


अमृतसर में दशहरे पर जो
हादसा हुआ, वो हर किसी को अंदर तक हिला देने वाला है. ठीक रावण दहन के वक्त पटरियों
पर खड़ी भीड़ को रफ्तार से आई ट्रेन ने रौंद दिया. हादसे में कितनी बेशकीमती जानें
गईं. कितनों ने हाथ-पैर खोए, ये अभी साफ़ नहीं. भूकंप, बाढ़, सुनामी जैसी प्राकृतिक
आपदाओं से होने वाले जान-माल के नुकसान पर किसी का बस नहीं. लेकिन इनसानों की
लापरवाही से खुद बने हालात से ऐसे दिल दहला देने वाले हादसे को न्योता देना बहुत
कुछ सोचने को मजबूर कर देता है. 

   
हादसा क्यों हुआ?  फिर कभी ऐसा ना हो, इस पर फोकस करने की
जगह हमेशा की तरह राजनीति हावी है. कौन दोषी है
? दशहरे पर रावण दहन के आयोजक?  कार्यक्रम की मुख्य अतिथि नवजोत कौर सिद्धू
समेत रसूखदार दर्शक
? भीड़ को नियंत्रित करने की जगह वीआईपी ड्यूटी बजाते पुलिसवाले? आयोजकों से सूचना ना मिलने
की दलील देता प्रशासन
? 
और प्रशासन से सूचना
ना मिलने की दलील देते रेलवे राज्य मंत्री मनोज सिन्हा
? बड़ी लापरवाही की बात कहते
स्थानीय विधायक और मंत्री नवजोत सिद्धू
? या जांच की बात कह कर तमाम सवालों से
बचने वाले मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह?


हादसा कितना भी बड़ा
क्यों ना हो राजनीति की ट्रेन अवसरवादिता के ट्रैक पर पूरी रफ्तार से दौड़ती रहती
है. पंजाब में कांग्रेस की सरकार है. अमृतसर की राजनीति में कांग्रेस के नवजोत
सिद्धू और उनकी पत्नी डॉ नवजोत कौर सिद्धू बड़े नाम हैं. बताया जा रहा है कि कार्यक्रम
के आयोजक सौरभ मिट्ठू मदान कांग्रेस पार्षद विजय मदान के पति हैं और सिद्धू परिवार
के करीबी हैं. मिट्ठू मदान का कहना है कि उन्होंने समारोह की जानकारी डीसीपी और
संबंधित थाने को दी थी. आयोजकों का कहना है कि पुलिस से मिला लिखित अनुमति पत्र
उनके पास मौजूद है. वहीं, अमृतसर निगम कमिश्नर सोनाली गिरी ने कहा कि आयोजन के लिए
कोई अनुमति नहीं ली गई.


चलिए ये छोड़िए कि
अनुमति ली गई या नहीं ली गई, लेकिन क्या पुलिस-प्रशासन आंखें मूंद कर बैठे थे कि
रेलवे ट्रैक के बिल्कुल पास इतना बड़ा आयोजन हो रहा था और उसने समय रहते जरूरी कदम
नहीं उठाए
?  पहले तो वहां रावण दहन होने ही नहीं देना
चाहिए था. क्या इसलिए प्रशासन हाथ पर हाथ धरे बैठे रहा कि नवजौत कौर सिद्धू
कार्यक्रम की मुख्य अतिथि थीं
?


अकाली दल बादल और
बीजेपी को विपक्ष के नाते हादसे ने अमरिंदर सरकार और सिद्धू दंपती पर निशाना साधने
का मौका फरमान कर दिया है. नवजोत कौर सिद्धू पर सवाल उठाया जा रहा है कि वे हादसा
होने के बावजूद कार्यक्रम स्थल से रवाना हो गईं
? वहीं नवजोत कौर सिद्धू का दावा है कि
उन्हें घर पहुंचने के बाद हादसे की जानकारी मिली. नवजोत कौर खुद डॉक्टर हैं. वो
रात में ही अस्पताल पहुंची और घायलों के इलाज में हाथ भी बंटाया. टांके लगाए.
लेकिन इस पर भी विपक्ष ने सवाल उठाए कि सरकारी अस्पताल में किस हैसियत से नवजोत
कौर टांके लगा रही थीं
? 



नवजोत कौर सिद्धू का अपनी सफाई में कहना है कि ये कार्यक्रम इसी जगह पर 40
साल से होता आ रहा है, इसलिए हादसे पर राजनीति करने वालों को शर्म आनी चाहिए.  
 


ये तो रही हादसे को
लेकर राजनीति की बातें. राजनीति को अलग रखें, अब आते हैं एक एक कर हादसे से जुड़े
अहम पहलुओं पर. पहले आते हैं रेलवे पर. रेलवे की ओर से कहा गया कि ड्राईवर को धुएं
और घुमावदार मोड़ की वजह से रेलवे ट्रेक पर लोगों के खड़े होने का समय रहते नहीं
पता चला. रेलवे बोर्ड के चेयरमैन अश्विनी लोहानी के मुताबिक ट्रैक पर अचानक खड़े
लोगों को देखकर ड्राइवर ने ट्रेन की स्पीड 90 किमी प्रति घंटा से घटाकर 65 किमी
/घंटा कर दी. ट्रेन में
अचानक इमरजेंसी ब्रेक लगाई जाती तो ट्रेन पलट भी सकती थी, जिससे मरने वालों की
संख्या कहीं ज्यादा होती.  


जालंधर-अमृसर डीेएमयू
ट्रेन (
JUC-ASR DMU – 74643) से ये हादसा
हुआ. इसका 19 अक्टूबर का रनिंग स्टेटस देखें तो ये जालंधर सिटी स्टेशन से
निर्धारित समय 5.10 पर रवाना हुई और अमृतसर स्टेशन पर बिना किसी विलंब तय समय 7.00
बजे पहुंच गई. 79 किलोमीटर का ये सफर 1 घंटा 50 मिनट में तय होता है. ये हादसा
मनानवाला स्टेशन और अमृतसर के बीच हुआ. 



मनानवाला स्टेशन और अमृतसर स्टेशन के बीच की दूरी 10 किलोमीटर है..मनानवाला स्टेशन पर ट्रेन शुक्रवार को 9 मिनट लेट पहुंची थी. इस स्टेशन से शेड्यूल्ड टाइम 18.37 की 18.45 पर ट्रेन अमृतसर के लिए रवाना हुई जो निर्धारित समय से 8 मिनट लेट थी. तो क्या ट्रेन ड्राइवर राइट टाइम पर अमृतसर में
सफर खत्म करने की जल्दी में था. ड्राइवर का यही कहना है कि उसे ग्रीन सिग्नल था और
कोई संकेत पटरी पर लोगों की मौजूदगी की वजह से रफ्तार कम करने के लिए नहीं था
?  सवाल ये भी है कि आयोजन स्थल के पास
गेटमैन वाला फाटक था
? 
गेटमैन कहां सोया हुआ
था
? उसने अलर्ट क्यों नहीं किया?     


हादसे की कमिश्नर
स्तरीय जांच में साफ हो जाएगा कि इतनी सारी मौतों का सबब बनने के लिए कौन-कौन दोषी
है
? लेकिन उससे पहले इन बातों
पर सोचना हम सब का फर्ज बनता है कि भविष्य में अमृतसर जैसा हादसा फिर कभी ना हो
?


सबसे पहली बात तो
इनसान की सुरक्षा के बारे में सबसे ज्यादा वो खुद ही सोच सकता है. फेसबुक, ट्विटर,
इंस्टाग्राम के चलते और मोबाइल फोन की सहज उपलब्धता के चलते सेल्फी, वीडियो और
लाइव तक अब हर किसी की पहुंच है. लेकिन ऐसा करते हुए इतना भी बेसुध नहीं होना
चाहिए कि आसपास का बिल्कुल ख्याल ही ना रहे. ये भी भुला दिया जाए कि जिस रेलवे
ट्रैक पर खड़े हैं, वहां से कभी भी ट्रेन गुजर सकती है
.
पहली बात तो ये कि
क्या भीड़ भाड़ वाले और रेलवे ट्रैक के पास मौजूद असुरक्षित जगह पर रावण दहन जैसे
कार्यक्रम होने चाहिए
? ये बात सरकार-प्रशासन-नेताओं के साथ-साथ हम आम लोगों को भी सोचना चाहिए?  साथ ही उन्हें भी जो धर्म और परंपरा की
बात-बात पर दुहाई देते हैं
?


ऐसे आयोजन रेलवे ट्रैक्स
से दूर सिर्फ बड़े खुले मैदान में हों, ऐसी बाध्यता नहीं होनी चाहिए
?  खुले बड़े मैदान में भी पुतलों के आसपास
बड़े क्षेत्र में किसी व्यक्ति के जाने की इजाजत नहीं होनी चाहिए, जिससे कि दहन के
वक्त किसी तरह के हादसे से बचा जा सके
?  


पिछले कुछ वर्षों से
ये प्रचलन भी देखने में आ रहा है कि कुछ जगहों पर रावण का बड़े से बड़ा पुतला
लगाने की होड़ होती है
? 
जाहिर है जितना बड़ा
पुतला होगा, उतना ही उसमें ज्यादा आतिशबाज़ी और पटाखों का इस्तेमाल किया जाएगा
? यानि जोखिम भी उसी हिसाब से
बढ़ता जाएगा. क्या किसी और सुरक्षित तरीके से रावण का दहन नहीं किया जा सकता
?
यहां एक सवाल ये भी
है कि त्योहारों धार्मिक आयोजनों, शादी-ब्याहों या अन्य कार्यक्रमों में आखिर
पटाखों और आतिशबाजी की अनुमति ही क्यों दी जाए
?  क्यों नहीं देश में पटाखों और आतिशबाजी पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया जाता?  इससे नुकसान ही नुकसान है. परंपराओं के
नाम पर ऐसी कुरीतियों को आखिर कब तक पालन किया जाता रहेगा. वो भी ये जानते हुए कि
इनसे नुकसान ही नुकसान है.


दशहरा हो या दिवाली
या फिर शबेबरात किसी को भी पटाखों या आतिशबाजी की इजाजत नहीं होनी चाहिए. हर साल
इनसे आग लगने की घटनाओं में जानमाल के नुकसान की सूचना मिलती है. पटाखों से हर साल
दिवाली पर हवा में जहर घुलने से सांस लेना तक मुश्किल हो जाता है. 2017 में दिवाली
पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश और दिल्ली पुलिस की सख्ती के बावजूद पटाखों से दिल्ली में
आग लगने की 204 घटनाएं हुईं. उससे पहले छह साल पर नजर डाली जाएं तो दिवाली पर
दिल्ली में 2016 में 243, 2015 में 290, 2014 में 211, 2013 में 177, 2012 में 184
और 2011 में 206 घटनाएं हुई थीं. पुलिस के मुताबिक वैसे आम दिनों में दिल्ली में
औसतन हर दिन आग लगने की 60 घटनाओं की सूचना मिलती है.    


धार्मिक आयोजनों में
पटाखों और आतिशबाज़ी से इतर भी बात की जाए तो यहां भीड़ नियंत्रण के लिए भी
सुरक्षा उपायों का करना बहुत ज़रूरी है. ऐसी जगहों पर भगदड़ का भी खतरा रहता है. 



दिल्ली
जैसे महानगर में कई रामलीला कमेटियां बड़े बड़े राजनेताओं, फिल्मी सितारों को
मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाती हैं. जाहिर है वीवीआईपी आते हैं तो पुलिस और प्रशासन
के बड़े अमले का ध्यान उनकी सुरक्षा पर ही सबसे ज्यादा लग जाता है जिससे उन्हें
कोई असुविधा नहीं हो. उनके लिए गेट भी खास होते हैं और बैठने की जगह भी खास. ऐसे
में भीड़ को उस के हाल पर छोड़ देना खतरे से खाली नहीं होता. ऐसे में इन
कार्यक्रमों में जाने वाले वीवीआईपी मेहमानों को भी आम लोगों की सुरक्षा को लेकर
आयोजकों से पहले ही आश्वस्त होना चाहिए तभी वहां जाने की हामी भरनी चाहिए.


पिछले कुछ वर्षों से
ये प्रचलन भी देखने में आ रहा है कि कुछ जगहों पर रावण का बड़े से बड़ा पुतला
लगाने की होड़ होती है
? 
जाहिर है जितना बड़ा
पुतला होगा, उतना ही उसमें ज्यादा आतिशबाज़ी और पटाखों का इस्तेमाल किया जाएगा
? यानि जोखिम भी उसी हिसाब से
बढ़ता जाएगा. क्या किसी और सुरक्षित तरीके से रावण का दहन नहीं किया जा सकता
?

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